मंच को नमन
शीर्षक - कलम
अभिनंदन वंदन तुम्हें कलम
शत शत नमन तुम्हें कलम
जब जब
तलवारे रही नाकाम
तब तब
रही विजय तुम्हारे नाम
तुम प्रकृति रक्षक हो
तुमनें किए निराले तुमने काम
इतिहास बदल देते तुम
तुम नहीं किसी से कम
शत-शत नमन तुम्हें कलम
श्रृंगार है तुमसे
अंगार है तुमसे
है वियोग संयोग
सद्भाव है तुमसे
शौर्य कीर्ति है तुमसे
प्रकाश है तुमसे
करते हो तम का ग्रास
जीवन आधार है तुमसे
तुम ही हो बल विक्रम
शत-शत नमन तुम्हें कलम
लिखी वीरत्व की कहानी
महकती है जवानी
हे तुमसे गंगा यमुना की गाथा
नहीं है कोई तुमसा दानी
मधुर है आपकी वानी
नहीं है दूजी कोई शानी
सच का साथ निभाया तुमनें
पीर सदा तुमनें पहचानी
कोई मित्र नहीं तुम्हारे सम
शत शत नमन तुम्हें कलम
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मैं घोषणा करता हूं कि यह रचना मौलिक स्वागत है।
भास्कर सिंह माणिक, कोंच
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